
गांव की एक साधारण लड़की सुधा, अपने माता-पिता के साथ रहती थी। पिता किसान थे और मां गृहिणी। सुधा गांव के बच्चों को पढ़ा कर थोड़े पैसे कमा लेती थी, लेकिन गांव में अक्सर सूखा या बाढ़ आने से जीवन कठिन होता जा रहा था। शादी की उम्र भी हो चली थी, लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी।
एक दिन उसकी सहेली सपना, जो शहर में पढ़ रही थी, गांव आई। उसने सुधा को शहर चलकर नौकरी करने की सलाह दी। सुधा ने अपने माता-पिता से बहुत मिन्नतें कीं और सपना के पिता की मदद से वह शहर जाने में सफल हुई।
शहर में सुधा को एक ऑफिस में नौकरी मिल गई। वह सीधी-सादी लड़की थी और काम में डूबी रहती थी। एक सहकर्मी महेश उससे धीरे-धीरे दोस्ती करने लगा और उसे ऑफिस से घर छोड़ने लगा। सुधा को उसका साथ अच्छा लगने लगा। समय के साथ यह दोस्ती प्यार में बदल गई।
एक दिन सुधा के पिता अचानक शहर आ गए। उन्होंने सुधा को बदलते देखा — रहन-सहन, बातें, सोच — सब कुछ अब शहर जैसा था। सुधा ने उन्हें बताया कि वह एक लड़के से प्यार करती है और शादी करना चाहती है। पिता बहुत नाराज हुए और मना कर दिया। झगड़े के बाद सुधा ने एक चिट्ठी लिखी और घर छोड़ दिया।
वापस शहर आकर वह महेश से मिलने गई तो पता चला कि महेश ने किसी अमीर लड़की से शादी करने का फैसला कर लिया है। वह सुधा को छोड़ चुका था। सुधा के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। वह टूट चुकी थी।
उसकी सहेली सपना ने उसे संभाला और गांव वापस ले गई। सुधा रोती हुई अपने पिता के पैरों में गिर गई — “मुझे माफ कर दीजिए पिताजी, मुझसे गलती हो गई। अब मैं वही करूंगी जो आप कहेंगे।”
पिता ने उसे गले लगाते हुए कहा — “जो हुआ, उसे भूल जा बेटी। तू वापस आ गई, यही सबसे बड़ी बात है।”
💡 सीख (Moral)
आत्मनिर्भर बनो, पर अपनों का साथ कभी मत छोड़ो। विश्वास और सम्मान रिश्तों की नींव होते हैं।